कल तक रामभरोसे एक आम आदमी थे। पर आज अचानक खास हो गए। हुआ यूँ कि उनके दूर के रिश्ते के चाचा स्वर्ग सिधार गए। चाचा स्वर्ग सिधार गए, वह कोई बड़ी बात नहीं, बड़ी बात तो यह है कि चाचा बहुत बड़ी ज़मीन के मालिक थे और उनके कोई वारिस नहीं था। अब रामभरोसे को ही उनकी सारी ज़मीन मिलनी थी। हालांकि रामभरोसे औए चाचा की कोई ख़ास पटती नहीं थी!!! फिर भी रामभरोसे को ज़मीन मिली और चाचा को अन्तिम क्रिया करने वाला कोई अपना। हाँ चाचा जाते जाते अपनी वसीयत में यह लिख गए कि इस ज़मीन को बेचा नहीं जा सकता। और इसका इस्तेमाल एक निश्चित अवधि तक हो जाना चाहिए। उस अवधि के बाद ज़मीन रामभरोसे के हाथ से निकल कर सरकार के पास चली जायेगी।
खैर सारा काम निपटने के बाद रामभरोसे बैठे। उनके हाथ तो लौटरी ही लगी थी। और लौटरी के साथ साथ मित्र भी एकाएक बढ़ गए थे। रामभरोसे को इस समय किसी अच्छे मित्र की सलाह की भी जरूरत थी। सोच रहे थे कि इस अचानक आई संपत्ति का कैसे उपयोग करें। पत्नी ने सलाह दी कि इस पर एक आश्रम बना दिया जाए चाचा के नाम से, जिसमें गरीब सताई हुई लडकियां और औरतें रह सकें। रामभरोसे ने पत्नी को ऐसी जलती हुई नज़र मारी कि बेचारी सीधे रसोई में ही घुसी।
सुबह शाम उनके मित्रों की मंडली बैठती। चाय पकौडी के साथ साथ कई तरह के आईडिया भी मिलते रोज़ रोज़। कोई कहता कि स्कूल खोलना चाहिए। तभी दूसरा कहता कि स्कूल में सौ झंझट है। पहले स्कूल खोलने के लिए सरकार से आज्ञा लो, यानी कि पैसा खिलाओ। फिर बच्चे ढूंढो। अब स्कूल खोलना है तो टीचर्स भी रखने होंगें। उन्हें पैसा देना होगा। यह तो घाटे का सौदा हुआ। समाजसेवा तो ठीक है पर पैसा जाएगा।
अगला प्रस्ताव आया कि अनाथ आश्रम खोल लिया जाए। इसका भी तुंरत विरोध हुआ। किसी ने कहा कि आजकल अनाथ आश्रम वाला धंधा भी घाटे का ही सौदा है। बच्चे इकट्ठे होते जाते हैं। मुफ्त की रोटियाँ तोड़ते हैं और बड़े होकर चोर उचक्के ही बनते हैं। अब चोर उचक्के ही बनाना है तो सड़क क्या बुरी चीज़ है??
इस तरह कई प्रस्ताव आए और खारिज हुए। रामभरोसे को भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। ऐसा कौन सा काम शुरू किया जाए जिसमें झंझट भी कम हो और नकद नारायण भी मिल जाए। उन्हें तो अब ज़मीन जी का जंजाल लगने लगी थी।
श्यामसुंदर रामभरोसे के बचपन के साथी थे। उनके पास आजकल कोई काम नहीं था। अतः उनके पास बहुत समय था सोचने का कि रामभरोसे की ज़मीन का कैसे इस्तेमाल किया जाए। आख़िर मित्रता भी कोई चीज़ है। वह दिन रात इसी उधेड़बुन में लगे रहते कि कैसे रामभरोसे की समस्या का समाधान किया जाए। बहुत विचार करने के बाद उन्हें समस्या का समाधान मिल गया। उन्होंने रामभरोसे को सलाह दी कि इस ज़मीन पर एक मन्दिर बनाया जाए। इससे धर्म-कर्म भी हो जायेगा और मन्दिर में आए चढावे से आमदनी भी हो जायेगी। शायद कोई सरकारी अनुदान भी मिल जाए। आख़िर चुनाव समय नजदीक आ रहा था। बस एक पुजारी रखना होगा। उसके अलावा कोई खर्चा नहीं होगा। मजदूर को भी पैसा नहीं देना होगा। आजकल तो बड़े बड़े सेठ मजदूरों को स्पोंसर कर देते है मन्दिर बनाने के लिए। आपका धेला नहीं जाता। फिर मन्दिर का उदघाटन किसी बड़े आदमी से करा लो तो मन्दिर जल्दी ही फेमस हो जाएगा।
रामभरोसे को बात जँच गयी। उन्होंने तय कर लिया कि मन्दिर ही बनेगा। अब अगली समस्या थी कि मन्दिर किसका बनेगा। इस समस्या में दम था क्यूंकि यह निश्चित करना मुश्किल था कि कौन से भगवान् के अनुयायी सबसे ज्यादा हैं जिससे कि मन्दिर को आमदनी अधिक से अधिक हो।
खैर इस समस्या को सुलझाने के लिए मित्रमंडली बैठी। पर जितने मुंह उतनी बातें! किसी को राम जंचते थे तो कोई कृष्ण का अनुयायी था। किसी के देवता हनुमान थे, तो कोई शिव का भक्त था। यानी कि फिर एक समस्या!! पत्नी ने डरते डरते कहा कि क्यों ना सारे देवी-देवता कि मूर्ति स्थापित कर दी जाए?? रामभरोसे ने इस बार पत्नी को घूरा नहीं। उन्हें भी विचार पसंद आया। उन्होंने यह प्रस्ताव मित्रों के सामने रखा। मित्रों ने भी हाँ में हाँ मिलाई। फिर भी साहब, जनतंत्र में कोई प्रस्ताव बिना विरोध के कैसे पारित हो? कुछ लोगों ने सुझाया कि अगर सारे भगवान् को रख दिया जायेगा तो मन्दिर उतना फेमस नहीं होगा। देखो न जितने भी प्रसिद्ध मन्दिर हैं किसी एक ही भगवान् के हैं। बात ठीक भी थी। मन्दिर है कोई दुकान थोड़े ही?? जहाँ विविधता देखने को मिले!! खैर तय हुआ कि किन्हीं ३ भगवानों की मूर्ति स्थापित की जायेगी।
अब घटकर केवल ३ भगवान् ही रह गए। अब प्रश्न था कि कौन से ३??? ब्रह्मा, विष्णु, महेश???? ना यह तो बहुत पुरानी सी बात हो गयी.... राम, कृष्ण, शिव..... नहीं... कौन ३???? इसका फैसला करना निहायत कठिन था। खैर तय हुआ कि वोट कर लिया जाए। जिन तीन भगवानों के नाम की चिट्ठी सबसे अधिक होगी वह टॉप ३ घोषित कर दिए जायेंगे और मन्दिर में उन्हीं को स्थान मिलेगा।
यह समाचार इन्द्र के दरबार में भी पहुँचा। अब जबकि रामभरोसे एक बड़े आदमी बन गए थे तो देवी-देवता भी उन्हें जानने लगे थे। उनकी चर्चा अक्सर होती रहती थी दरबार में। और जब से नारद जी ने यह समाचार सुनाया था कि रामभरोसे मन्दिर खोलने जा रहे हैं, तो सभी देवताओं के मन में आशा की एक लहर जाग गयी थी। क्या पता रामभरोसे की तरह किसकी लौटरी लग जाए??? हो सकता है कि उनके नाम का ही मन्दिर बन जाए!! वैसे भी कलयुग में उनके सामने कम्पटीशन था। आजकल भगवानों से ज्यादा नेताओं की पूछ हो रही थी। और जब से नारद जी ने बताया कि ब्रह्मा-विष्णु-महेश का चेहरा बदल गया है। ब्रह्माजी अब थोड़ा और बूढे हो गए हैं, विष्णुजी चश्मा लगाने लगे हैं और महेश यानी शिवजी के बाल थोड़े कम हो गए हैं। और तो और माँ अन्नपूर्ण थोड़ा मुटा गयी हैं। और यह सब लक्ष्मी जी की सवारी यानी "कमल" के फूल पर विराजमान हैं तो देवी देवताओं में नेताओं का डर बैठ गया था। क्या भरोसा कब कौन नेता किस देवता का रूप धारण कर लें???
फिर एक नेता ही नहीं, अब अभिनेता और क्रिकेट खिलाड़ी भी फेमस होने लगे थे। अब उनके नाम के मन्दिर और चालिसायें बनने लगी थीं। इसीलिए सभी देवता सतर्क हो गए कि रामभरोसे को पहले ही घेर लिया जाए इससे पहले कि नेता-अभिनेता-खिलाडी इस मैदान में आयें, अपने अपने नामों की रजिस्ट्री करा ली जाए।
अगले दिन तडके ही देवता अपने अपने अभियान पर जुट गए। शिव अपने तांडव से रामभरोसे और मित्रों को खुश करने की जुगाड़ में थे तो राम के पास धनुष की कला थी। कृष्ण अपना भोलापन मक्खन से दिखाने की कोशिश कर रहे थे तो हनुमान के पास बला की ताकत थी। आख़िर रामभरोसे ने निश्चय किया कि सभी देवताओं का इंटरव्यू लिया जाए तब कहीं जाकर बात बनेगी। उन्होंने एक नोटिस निकाला कि फलां दिन इंटरव्यू है।
सब देवता इंटरव्यू की तैयारी में लग गए। इन्द्र की सभा में अब चुप्पी रहने लगी। पार्वतीजी ने शिव जी को २० प्रश्नों की सूची बना के दी। लक्ष्मी जी अब विष्णुजी को रटाने में लग गयीं। कृष्ण राधा रास भूलकर इंटरव्यू की तैयारी करते नज़र आने लगे। बेचारे हनुमानजी सीधे सरस्वतीजी की शरण में भागे। कुल मिला कर स्वर्ग का दृश्य ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई महान एग्जाम होने जा रहा हो।
खैर इंटरव्यू का दिन भी आ ही गया। रामभरोसे, श्यामसुंदर और एक और मित्र फिरौतिलाल की टीम बनी। उन्होंने कुछ प्रश्न तय किए कि कौन से किस देवता से पूछने हैं।
सबसे पहले ब्रह्मा जी का नंबर आया। ब्रह्मा जी सीधे अन्दर चले गए। यह देख कर उन तीनों की भ्रकुटि तन गयी। अरे!! यह भी कोई बात हुई भला??? ना अन्दर आने के लिए पूछना ना नमस्ते ना कुछ। सीधे सीधे कुर्सी पर बैठ गए जनाब!!! खैर सबसे पहला प्रश्न -"आपकी क्या उपलब्धियां हैं??"
ब्रह्माजी-"मैं ब्रह्मा हूँ।"
"तो??"
"मैंने सृष्टि का निर्माण किया है?"
"सृष्टि कहाँ है? उससे हमें क्या मतलब?? आप तो अपनी उपलब्धियां बताइये।"
बेचारे ब्रह्माजी निरुत्तर हो गए।
अगला नंबर शिव जी का था।
उनसे प्रश्न किया गया -"आपके कितने मन्दिर हैं?"
शिवजी ने उत्तर दिया-"बहुत हैं कभी मैंने गिने नहीं। पर कहते हैं कि भारतवर्ष में सबसे ज्यादा मन्दिर मेरे नाम के ही हैं।"
"अरे तो भी आपको संतोष नहीं है? किसी और का नंबर भी आने दो न?"
बेचारे शिव जी!!! इस एंगल से तो उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था!!!!
इसके बाद राम आए।
"आपने सीता को वनवास क्यूँ दिया था?"
"राज हित में। मैंने सीता को वनवास दिया था पर स्वयं महल में रहते हुए भी वनवासियों जैसा जीवन काटा। उसके बिना महल भी जंगल जैसा लगता था। मैं आप भी भूमि पर सोया, कंदमूल खाया, और....."
"बस बस!! हमने आपसे कोई एक्सप्लेनेशन नहीं माँगा। अगर हमने आपका मन्दिर बनाया तो नारी मुक्ति वाले हमारे ख़िलाफ़ हो सकते हैं।"
अब आया कृष्ण जी का नंबर।
"आपने कौरवों का साथ ना देकर पांडवों का साथ क्यों दिया?"
"क्यूंकि पांडव सत्य की राह पर थे।"
कृष्ण जी से अगला प्रश्न नहीं पूछा। सोचा कि अगर कृष्ण मन्दिर बनाया तो सिर्फ़ वही लोग आयेंगें जो सच बोलते हैं। अब ऐसे लोग तो हैं ही नहीं और हैं भी तो उनकी औकात नहीं है कि मन्दिर को कुछ दान दक्षिणा दे सकें।
अगली बारी हनुमानजी की थी।
"कहते हैं आप में बहुत शक्ति है?"
"हाँ मैं पवनपुत्र हूँ। राम भक्त हूँ। मेरे सारे कार्य मात्र राम नाम से हो जाते हैं।"
यानी कि इनमें अपनी कोई बात नहीं। इनका नंबर भी कट।
ऐसे ही सुबह से शाम हो गयी। रामभरोसे और टीम को कोई योग्य उम्मीदवार नहीं मिला जिसका मन्दिर बनाया जाए।
इसके बाद २-३ दिन और चला इंटरव्यू पर टॉप ३ भगवान् नहीं मिल सके। रामभरोसे की नियत अवधि भी समाप्त होने वाली है।
मेरी आप लोगों से विनती है कि अगर आप रामभरोसे को टॉप ३ भगवान चुनने में मदद कर सकें तो वह आपको दुआएं देंगे। हो सकता है टॉप ३ भगवानों से आपकी सिफारिश भी लगा दें। आखिरकार आजकल भगवान् रामभरोसे जैसों की बहुत सुनने लगे है!!
खैर सारा काम निपटने के बाद रामभरोसे बैठे। उनके हाथ तो लौटरी ही लगी थी। और लौटरी के साथ साथ मित्र भी एकाएक बढ़ गए थे। रामभरोसे को इस समय किसी अच्छे मित्र की सलाह की भी जरूरत थी। सोच रहे थे कि इस अचानक आई संपत्ति का कैसे उपयोग करें। पत्नी ने सलाह दी कि इस पर एक आश्रम बना दिया जाए चाचा के नाम से, जिसमें गरीब सताई हुई लडकियां और औरतें रह सकें। रामभरोसे ने पत्नी को ऐसी जलती हुई नज़र मारी कि बेचारी सीधे रसोई में ही घुसी।
सुबह शाम उनके मित्रों की मंडली बैठती। चाय पकौडी के साथ साथ कई तरह के आईडिया भी मिलते रोज़ रोज़। कोई कहता कि स्कूल खोलना चाहिए। तभी दूसरा कहता कि स्कूल में सौ झंझट है। पहले स्कूल खोलने के लिए सरकार से आज्ञा लो, यानी कि पैसा खिलाओ। फिर बच्चे ढूंढो। अब स्कूल खोलना है तो टीचर्स भी रखने होंगें। उन्हें पैसा देना होगा। यह तो घाटे का सौदा हुआ। समाजसेवा तो ठीक है पर पैसा जाएगा।
अगला प्रस्ताव आया कि अनाथ आश्रम खोल लिया जाए। इसका भी तुंरत विरोध हुआ। किसी ने कहा कि आजकल अनाथ आश्रम वाला धंधा भी घाटे का ही सौदा है। बच्चे इकट्ठे होते जाते हैं। मुफ्त की रोटियाँ तोड़ते हैं और बड़े होकर चोर उचक्के ही बनते हैं। अब चोर उचक्के ही बनाना है तो सड़क क्या बुरी चीज़ है??
इस तरह कई प्रस्ताव आए और खारिज हुए। रामभरोसे को भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। ऐसा कौन सा काम शुरू किया जाए जिसमें झंझट भी कम हो और नकद नारायण भी मिल जाए। उन्हें तो अब ज़मीन जी का जंजाल लगने लगी थी।
श्यामसुंदर रामभरोसे के बचपन के साथी थे। उनके पास आजकल कोई काम नहीं था। अतः उनके पास बहुत समय था सोचने का कि रामभरोसे की ज़मीन का कैसे इस्तेमाल किया जाए। आख़िर मित्रता भी कोई चीज़ है। वह दिन रात इसी उधेड़बुन में लगे रहते कि कैसे रामभरोसे की समस्या का समाधान किया जाए। बहुत विचार करने के बाद उन्हें समस्या का समाधान मिल गया। उन्होंने रामभरोसे को सलाह दी कि इस ज़मीन पर एक मन्दिर बनाया जाए। इससे धर्म-कर्म भी हो जायेगा और मन्दिर में आए चढावे से आमदनी भी हो जायेगी। शायद कोई सरकारी अनुदान भी मिल जाए। आख़िर चुनाव समय नजदीक आ रहा था। बस एक पुजारी रखना होगा। उसके अलावा कोई खर्चा नहीं होगा। मजदूर को भी पैसा नहीं देना होगा। आजकल तो बड़े बड़े सेठ मजदूरों को स्पोंसर कर देते है मन्दिर बनाने के लिए। आपका धेला नहीं जाता। फिर मन्दिर का उदघाटन किसी बड़े आदमी से करा लो तो मन्दिर जल्दी ही फेमस हो जाएगा।
रामभरोसे को बात जँच गयी। उन्होंने तय कर लिया कि मन्दिर ही बनेगा। अब अगली समस्या थी कि मन्दिर किसका बनेगा। इस समस्या में दम था क्यूंकि यह निश्चित करना मुश्किल था कि कौन से भगवान् के अनुयायी सबसे ज्यादा हैं जिससे कि मन्दिर को आमदनी अधिक से अधिक हो।
खैर इस समस्या को सुलझाने के लिए मित्रमंडली बैठी। पर जितने मुंह उतनी बातें! किसी को राम जंचते थे तो कोई कृष्ण का अनुयायी था। किसी के देवता हनुमान थे, तो कोई शिव का भक्त था। यानी कि फिर एक समस्या!! पत्नी ने डरते डरते कहा कि क्यों ना सारे देवी-देवता कि मूर्ति स्थापित कर दी जाए?? रामभरोसे ने इस बार पत्नी को घूरा नहीं। उन्हें भी विचार पसंद आया। उन्होंने यह प्रस्ताव मित्रों के सामने रखा। मित्रों ने भी हाँ में हाँ मिलाई। फिर भी साहब, जनतंत्र में कोई प्रस्ताव बिना विरोध के कैसे पारित हो? कुछ लोगों ने सुझाया कि अगर सारे भगवान् को रख दिया जायेगा तो मन्दिर उतना फेमस नहीं होगा। देखो न जितने भी प्रसिद्ध मन्दिर हैं किसी एक ही भगवान् के हैं। बात ठीक भी थी। मन्दिर है कोई दुकान थोड़े ही?? जहाँ विविधता देखने को मिले!! खैर तय हुआ कि किन्हीं ३ भगवानों की मूर्ति स्थापित की जायेगी।
अब घटकर केवल ३ भगवान् ही रह गए। अब प्रश्न था कि कौन से ३??? ब्रह्मा, विष्णु, महेश???? ना यह तो बहुत पुरानी सी बात हो गयी.... राम, कृष्ण, शिव..... नहीं... कौन ३???? इसका फैसला करना निहायत कठिन था। खैर तय हुआ कि वोट कर लिया जाए। जिन तीन भगवानों के नाम की चिट्ठी सबसे अधिक होगी वह टॉप ३ घोषित कर दिए जायेंगे और मन्दिर में उन्हीं को स्थान मिलेगा।
यह समाचार इन्द्र के दरबार में भी पहुँचा। अब जबकि रामभरोसे एक बड़े आदमी बन गए थे तो देवी-देवता भी उन्हें जानने लगे थे। उनकी चर्चा अक्सर होती रहती थी दरबार में। और जब से नारद जी ने यह समाचार सुनाया था कि रामभरोसे मन्दिर खोलने जा रहे हैं, तो सभी देवताओं के मन में आशा की एक लहर जाग गयी थी। क्या पता रामभरोसे की तरह किसकी लौटरी लग जाए??? हो सकता है कि उनके नाम का ही मन्दिर बन जाए!! वैसे भी कलयुग में उनके सामने कम्पटीशन था। आजकल भगवानों से ज्यादा नेताओं की पूछ हो रही थी। और जब से नारद जी ने बताया कि ब्रह्मा-विष्णु-महेश का चेहरा बदल गया है। ब्रह्माजी अब थोड़ा और बूढे हो गए हैं, विष्णुजी चश्मा लगाने लगे हैं और महेश यानी शिवजी के बाल थोड़े कम हो गए हैं। और तो और माँ अन्नपूर्ण थोड़ा मुटा गयी हैं। और यह सब लक्ष्मी जी की सवारी यानी "कमल" के फूल पर विराजमान हैं तो देवी देवताओं में नेताओं का डर बैठ गया था। क्या भरोसा कब कौन नेता किस देवता का रूप धारण कर लें???
फिर एक नेता ही नहीं, अब अभिनेता और क्रिकेट खिलाड़ी भी फेमस होने लगे थे। अब उनके नाम के मन्दिर और चालिसायें बनने लगी थीं। इसीलिए सभी देवता सतर्क हो गए कि रामभरोसे को पहले ही घेर लिया जाए इससे पहले कि नेता-अभिनेता-खिलाडी इस मैदान में आयें, अपने अपने नामों की रजिस्ट्री करा ली जाए।
अगले दिन तडके ही देवता अपने अपने अभियान पर जुट गए। शिव अपने तांडव से रामभरोसे और मित्रों को खुश करने की जुगाड़ में थे तो राम के पास धनुष की कला थी। कृष्ण अपना भोलापन मक्खन से दिखाने की कोशिश कर रहे थे तो हनुमान के पास बला की ताकत थी। आख़िर रामभरोसे ने निश्चय किया कि सभी देवताओं का इंटरव्यू लिया जाए तब कहीं जाकर बात बनेगी। उन्होंने एक नोटिस निकाला कि फलां दिन इंटरव्यू है।
सब देवता इंटरव्यू की तैयारी में लग गए। इन्द्र की सभा में अब चुप्पी रहने लगी। पार्वतीजी ने शिव जी को २० प्रश्नों की सूची बना के दी। लक्ष्मी जी अब विष्णुजी को रटाने में लग गयीं। कृष्ण राधा रास भूलकर इंटरव्यू की तैयारी करते नज़र आने लगे। बेचारे हनुमानजी सीधे सरस्वतीजी की शरण में भागे। कुल मिला कर स्वर्ग का दृश्य ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई महान एग्जाम होने जा रहा हो।
खैर इंटरव्यू का दिन भी आ ही गया। रामभरोसे, श्यामसुंदर और एक और मित्र फिरौतिलाल की टीम बनी। उन्होंने कुछ प्रश्न तय किए कि कौन से किस देवता से पूछने हैं।
सबसे पहले ब्रह्मा जी का नंबर आया। ब्रह्मा जी सीधे अन्दर चले गए। यह देख कर उन तीनों की भ्रकुटि तन गयी। अरे!! यह भी कोई बात हुई भला??? ना अन्दर आने के लिए पूछना ना नमस्ते ना कुछ। सीधे सीधे कुर्सी पर बैठ गए जनाब!!! खैर सबसे पहला प्रश्न -"आपकी क्या उपलब्धियां हैं??"
ब्रह्माजी-"मैं ब्रह्मा हूँ।"
"तो??"
"मैंने सृष्टि का निर्माण किया है?"
"सृष्टि कहाँ है? उससे हमें क्या मतलब?? आप तो अपनी उपलब्धियां बताइये।"
बेचारे ब्रह्माजी निरुत्तर हो गए।
अगला नंबर शिव जी का था।
उनसे प्रश्न किया गया -"आपके कितने मन्दिर हैं?"
शिवजी ने उत्तर दिया-"बहुत हैं कभी मैंने गिने नहीं। पर कहते हैं कि भारतवर्ष में सबसे ज्यादा मन्दिर मेरे नाम के ही हैं।"
"अरे तो भी आपको संतोष नहीं है? किसी और का नंबर भी आने दो न?"
बेचारे शिव जी!!! इस एंगल से तो उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था!!!!
इसके बाद राम आए।
"आपने सीता को वनवास क्यूँ दिया था?"
"राज हित में। मैंने सीता को वनवास दिया था पर स्वयं महल में रहते हुए भी वनवासियों जैसा जीवन काटा। उसके बिना महल भी जंगल जैसा लगता था। मैं आप भी भूमि पर सोया, कंदमूल खाया, और....."
"बस बस!! हमने आपसे कोई एक्सप्लेनेशन नहीं माँगा। अगर हमने आपका मन्दिर बनाया तो नारी मुक्ति वाले हमारे ख़िलाफ़ हो सकते हैं।"
अब आया कृष्ण जी का नंबर।
"आपने कौरवों का साथ ना देकर पांडवों का साथ क्यों दिया?"
"क्यूंकि पांडव सत्य की राह पर थे।"
कृष्ण जी से अगला प्रश्न नहीं पूछा। सोचा कि अगर कृष्ण मन्दिर बनाया तो सिर्फ़ वही लोग आयेंगें जो सच बोलते हैं। अब ऐसे लोग तो हैं ही नहीं और हैं भी तो उनकी औकात नहीं है कि मन्दिर को कुछ दान दक्षिणा दे सकें।
अगली बारी हनुमानजी की थी।
"कहते हैं आप में बहुत शक्ति है?"
"हाँ मैं पवनपुत्र हूँ। राम भक्त हूँ। मेरे सारे कार्य मात्र राम नाम से हो जाते हैं।"
यानी कि इनमें अपनी कोई बात नहीं। इनका नंबर भी कट।
ऐसे ही सुबह से शाम हो गयी। रामभरोसे और टीम को कोई योग्य उम्मीदवार नहीं मिला जिसका मन्दिर बनाया जाए।
इसके बाद २-३ दिन और चला इंटरव्यू पर टॉप ३ भगवान् नहीं मिल सके। रामभरोसे की नियत अवधि भी समाप्त होने वाली है।
मेरी आप लोगों से विनती है कि अगर आप रामभरोसे को टॉप ३ भगवान चुनने में मदद कर सकें तो वह आपको दुआएं देंगे। हो सकता है टॉप ३ भगवानों से आपकी सिफारिश भी लगा दें। आखिरकार आजकल भगवान् रामभरोसे जैसों की बहुत सुनने लगे है!!
4 टिप्पणियां:
प्रज्ञा जी, यह तो आपने बहुत कठिन काम दे दिया. आज के समय में टॉप ३ भगवान ढूँढने निकले तो ज़मीन रामभरोसे के हाथ से निकली ही समझिये. खैर, कहानी अच्छी बन पडी है और आज की मनोवृत्ति भी दर्शाती है. धन्यवाद.
aap rambharose ki selection committee mein hame bhi shamil kar deejiye....ham tay kar denge ki kis bhagwan ka mandir banega. are bhai...aajkal selection ke liye bhi ummeedwaar ko paise kharch karne hote hain....badhiya kahani.
ram bharose ke bhane aaj ke halaat par krari chot hai
kuch aisa hi likhti rahiye
meri subhkamnayain
बढिया लिखा ! हिन्दी ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है !
सुजाता
sandoftheeye.blogspot.com
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