गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

सब ठीक है..

"हेल्लो"
"हाँ हेल्लो माँ"
"हाँ बेटा कैसी हो?"
"मैं अच्छी हूँ.. आप लोग कैसे हो?"
"हम सब ठीक हैं.. सब ठीक चल रहा है.."
"पापा कैसे हैं?"
"ठीक हैं.. बस कल गिर गए थे... थोडा घुटने में दर्द है.. वैसे सब ठीक है.."
"कहाँ??? कैसे???"
"अरे मुन्नू को लेकर पार्क गए थे.. तो वहीँ पैर फिसल गया.."
"तो अकेले लेकर गए थे?? सुजाता नहीं थी???"
"सुजाता काम छोड़ गयी... तुम्हारी भाभी से खटपट हो गयी... "
"तो भाभी लेकर जाती... पापा क्यों ले गए?" 
"उसकी कल देर तक मीटिंग थी... इसीलिए वो घर पर नहीं थी उस वक्त.."
"भैया भाई कैसे हैं?? कैसा चल रहा है??"
"सब ठीक हैं.. भैया की कंपनी बंद होने वाली है... तो उसका थोडा टेंशन चल रहा है.."
"अच्छा!!"
"हाँ... तुम सुनाओ तुम कैसी हो?? यहाँ तो सब ठीक ही है...."
"मैं अच्छी हूँ... बस बच्चों की तबियत थोड़ी ऐसे ही चल रही है... बाकी सब ठीक है.."
"क्यों?? क्या हुआ??"
"गुडिया को कल स्कूल में चोट लग गयी थी... झूले से गिर पड़ी थी तो माथा फूट गया... ३ टाँके आये और रिंकू को सर्दी हो रखी है तो खांसी झुखाम... वैसे अब सब ठीक है.."
"अच्छा!!! और राकेश जी??"
"वो भी ठीक हैं... कल पड़ोस में लड़ाई हो गयी उनकी... तो मारापीटी हो गयी थी... पुलिस केस बन गया था.. बच्चों की तबियत ठीक नहीं थी और पडोसी तेज आवाज़ में गाने बजाने कर रहे थे... २-३ घंटे पुलिस स्टेशन में लग गए... अब ठीक है.."
"हम्म... और ससुराल वाले कैसे हैं तुम्हारे?? "
"ठीक हैं सब... बस थोडा बुढ़ापे की रोज़मर्रा की बातें... अच्छा पिंकी का रिश्ता देखा कहीं और??"
"हाँ देख रहे हैं १-२ जगह बात चल रही है... बस यह काम हो जाए तो जिम्मेदारियों से मुक्त हों... और तो सब कुछ ही सही है..  "
"और?? सब कैसा है??"
"बस सब ठीक है... तुम ठीक हो??"
"हाँ सब ठीक है... चलो फिर रखें??"
"हाँ चलो बच्चों का ख्याल रखना... बाकी सब बढ़िया..."
"ओके सब बढ़िया.. नमस्ते "
"नमस्ते"

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

बचपन बचाओ

"बच्चों का बचपन मत छीनिए. उन्हें जीने दीजिये. लम्बी कूद के चक्कर में उनकी छोटी छोटी उछालों को मत रोकिये. अपनी हसरतें बच्चों पर थोपना बाल मजदूरी से भी बुरा है.."
तालियों के शोर से सारा पंडाल गडगडा उठा. 
उसकी ओजस्वी वाणी सुनकर सभी भावविभोर हो उठे. उनमे बहुत लोग थे जो वाकई में अपने को कुसूरवार महसूस कर रहे थे. सब ने मन ही मन अपने बच्चों से माफ़ी मांगी...

बहुत थक गयी थी वो. सारा दिन जुलूस में निकल गया था. 
"बचपन बचाओ" अभियान में कई दिनों से जुटी हुई थी. अब घर जाकर थोडा आराम करेगी.


"मेरी गुडिया वापस करो.. " 
"नहीं यह मेरी है.. तुम अपनी से खेलो "
दोनों बेटियों का शोर दरवाज़े ही सुने दे रहा था. 
उसका सर दर्द से फटा जा रहा था. 
तभी मम्मी मम्मी करती दोनों बेटियों ने उसे घेर लिया और शुरू हो गयी शिकायतों का पुलिंदा लेकर.. 
"मेरी गुडिया, मेरे खिलोने, मेरे कपडे..." न जाने क्या क्या...
चटाक.........
छोटी के नन्हे गालों पर उसकी पाँचों उँगलियों की छाप आ गयी...
"तुम लोग थोड़ी देर चुप नहीं रह सकती?? जब देखो तब कूदती रहती हो.. कब तमीज़ सीखोगी?? 
होमवर्क हो गया??"
......
"चुप क्यों हो?"
"नहीं "
"क्यों नहीं?"
......
"डांस क्लास का क्या हुआ?"
......
"मैंने कुछ पूछा!!!"
कांपते हुए बड़ी ने कहा "मुझे डांस करना अच्छा नहीं लगता.."
"क्यों?"
....
"पता है!! कितनी महँगी है वो टीचर? इतना पैसा खर्च करके तुम लोगों को किसी लायक बनाने की कोशिश कर रही हूँ और तुम हो कि सब बेकार.... ज़िन्दगी में क्या करोगे आगे?? अभी से नहीं सोचोगे तो आगे सोचने का भी मौका नहीं मिलेगा...."
उसके हाथ से "बचपन बचाओ" अभियान के लेख गिरं कर उड़ने लगे थे...

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

राम नवमी और राम राज का सपना



वो खून कहो किस मतलब का जिसमे उबल का नाम नहीं
वो खून कहो किस मतलब का आ सके जो देश के काम नहीं

स्कूल में जब "गोपाल प्रसाद व्यास जी" की यह कविता पढ़ते थे तब सोचते थे कि पता नहीं वो लोग कैसे होंगे जिन्होंने देश की आज़ादी में भाग लिया या जो उस आन्दोलन के गवाह बने. फिर जैसे जैसे बड़े होते गए, जीवन की दौड़ धूप में ये पंक्तियाँ अपना महत्व कमती गयीं. रोज़मर्रा की बातों में कभी याद ही नहीं रहा कि कभी जोश में ऐसा  भी सोचा था कि अगर गुलामी के दौरान हम होते तो शायद यह कर सकते थे... वह कर सकते थे...

अचानक जैसे तूफ़ान आया.. कम से कम मेरे लिए तो तूफ़ान ही है... बर्बादी का नहीं, एक नयी हवा का नए जोश का तूफ़ान... और ज़रा गौर कीजिये.. इस नए जोशीले तूफ़ान का नाम ७१ वर्षीय अन्ना हजारे है..
सच कहूँ तो मैंने उनका नाम कभी नहीं सुना था.. पर आज मैं उनकी उतनी ही इज्ज़त करती हूँ जितनी भगत सिंह, नेताजी, आज़ाद, महात्मा गाँधी जैसे महान आत्माओं की...

भ्रष्टाचार मुक्त भारत.... यह वो सपना है जो पता नहीं कितनो ने देखा होगा.. कईयों ने सपना देखने से पहले ही आँखे बंद कर ली... कईयों ने सोचा और दुसरे ही पल हँसे कि यह क्या सोचा? पर एक आदमी ने कोशिश की और नतीजा!!! सारा भारत एक तरफ और कुछ नेता एक तरफ..  

मेरे एक दोस्त ने कहा कि महात्मा की क्रांति में हम नहीं थे.. पर इस क्रांति का हम हिस्सा बन सकते हैं.. तो क्यों नहीं? और कौन नहीं चाहता कि हमारा देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो? सच है जब हम विश्व कप जितने पर जश्न मनाने के लिए एक हो सकते हैं तो अपने देश कि सफाई के लिए क्यों नहीं? 
ज़रूरी नहीं कि केवल अनशन ही एक मार्ग है अन्ना का साथ देने का... हम इस लौ को बुझने नहीं दे यह भी हमारा साथ होगा उस व्यक्ति के लिए... 

आप सभी को राम नवमी कि हार्दिक शुभ कामनाये... आशा करती हूँ कि इस राम नवमी पर राम राज होने का जो बीज अन्ना ने बोया है, वो बड़े से बड़ा पेड़ बने और हम सब सच्चाई से कह सके "मेरा भारत महान"