कुछ शब्दों को जोड़कर, इधर उधर से जज़्बात लाकर कुछ रचा है. ज्यादा वक्त नहीं बीता चिट्ठा जगत से मुलाकात हुए. हमेशा से मन में था. जब तकनीक मेरे एहसासों से मिली तो "मेरी लेखनी" बन गयी.आशा है आप भी इसे प्यार देंगे पर लाड चाहूंगी अनुशासन भरा ताकि अपनी कमियों को सुधार सकूं.
शुक्रवार, 11 सितंबर 2009
रिप्लाई टू आल
पिछले कुछ दिनों पहले जब अपना email पढने के लिए खोला तो देखा कि एक मित्र का बहुत सारे लोगों को सन्देश आया था.. किसी एक अवसर के लिए जितने लोग आमंत्रित थे, उनको उस मित्र ने कुछ उपहार देने के लिए कुछ सुझाव दिए थे. और साथ ही बहुत विनम्रता के साथ निवेदन भी किया था कि अगर कोई बंधू उत्तर दे तो उसे "reply to all" ना करे. जिससे कि किसी को परेशानी न हो. अब हम सब ठहरे हिन्दुस्तानी!! यानी जिस बात को मना किया जाए, उसे ही करेंगे. ऐसा ही कुछ एक सज्जन ने किया. उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे एक "forwarded message" सब लोगों को भेजा. बस....... अब तो लोगों को बहुत अच्छा मसाला मिल गया अगले को पब्लिकली नीचा दिखाने का!!! उनको तो भाई ऐसी ऐसी गालियाँ पड़ी कि बस..... पर आप इसमें एक बात देखिये.... भाई को जिस बात के लिए कोसा जा रहा था, वही गलती सब कर रहे थे... यानी कि "reply to all" करके उसे धमकी दी जा रही थी कि उसने ऐसे कैसे इस सेवा का आनंद उठा लिया.. १-२ दिन तक तो हमने भी मजे लिए... फिर हमने इंसानियत (या मुसीबत ) के नाते एक बंधू को लिखा कि कम से कम आप तो सबको मत लिखो.... अब तो हमारी शामत ही आ गयी. उस भाई ने हमें जो फटकारा है कि हम क्या बताएं?? मेल पढने के बाद जो गुस्से की आग सुलगी है कि हम ही जानते हैं. (राजपूत खून अपना असर दिखा ही देता है).... पतिदेव को बताया तो वो भी हम पर बरस पड़े... कि तुम्हे क्या जरूरत थी किसी के मुंह लगने की? अपने काम से काम नहीं रख सकतीं?? वगैरह.... वगैरह..... अपने मित्रों को बताया तो उन्होंने भूल जाने कि सलाह दी... (cool down) होने कि.... बस तब से यह बात दिल में कुलबुला रही थी और हमने ठान लिया था कि अपने ब्लॉग-मित्रों के सामने ही अपना दुखडा रोयेंगे.... कम से कम कोई नसीहत तो नही मिलेगी न?? और हमारे दुखते हुए दिल पर सहानभूति (झूठी ही सही) का मलहम लगायेंगे... अब अगर कोई "forwarded message" आता है तो बस पढने के बाद माउस सीधा डिलीट बटन पर ही जाता है... जाते जाते आप लोगों को एक सलाह देना चाहेंगे.... कभी किसी से "reply to all" बात पर पंगा मत लेना.... वर्ना पब्लिक में बे-इज्जती होने से कोई नहीं बचा सकता....
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7 टिप्पणियां:
आपने सही कहा. हालाँकि ऐसा कई बार अनजाने में भी हो जाता है. कारण कि हिन्दी वाले कम्प्यूटर, ईमेल और ब्लॉग जगत की तमाम बारीकियों से धीरे-धीरे परिचित हो रहे हैं. हाँ इरादतन अगर कोई ऐसी हरकत करता है तो खेदजनक ही कही जायेगी.
जो महाशय उस काम की बात पर दूसरों को फटकार रहे थे वे आजकल बेमतलब की बातें मास ईमेल में भेज रहे हैं. अब उन्हें कौन फटकारे?
हा...हा...हा....हम इस पर कुछ नहीं कहेंगे....
क्यूंकि हमें समझ ही नहीं आ रहा कि इसका मज़ा लें...या क्या करें....खैर आपने बेशक अच्छा ही लिखा है.....!!
इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.
आपकी बात हमें याद रहेगी...ये सावधानी हम भी बरतेंगे...
अलग सा पोस्ट था, पढकर अच्छा लगा...
सुभकामनाएँ..
बड़ा गज़ब का पोस्ट है, मज़ा आ गया .....शुभकामनाएं..
हम भारतीय आदतन मसाले के आदि होते हैं ... चाहे वो खाना हो या फिल्म या और कुछ मसाले की तरफ भागते हमें देर नहीं लगती |
इन बातों में कुछ नहीं रखा ... इसे भुला जाईये !
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