शुक्रवार, 22 अगस्त 2008

बस ऐसे ही.....

बारिश में भीगे हुए मन को बहलाती हूँ

सावन जो बीत गया, उसकी याद दिलाती हूँ

क्या वो तुम ही थे? जो मेरे साथ थे

यह सवाल कई कई बार ख़ुद से दोहराती हूँ।


*****

फिर क्यूँ कूकी कोयल, गौरैया क्यूँ चहकी?

नहीं हैं यहाँ फूल तो क्यूँ फिर बगिया महकी?

पगली यह सावन है पतझड़ नहीं,

यही बात हर बार ख़ुद को समझाती हूँ

*****

चूड़ीवाला हांक लगाता है, बार बार बुलाता है

रंग-बिरंगी चूडियों की रंगीन कहानी सुनाता है

अब इस घर में उसका काम नही

क्यूँ नहीं उसको बतलाती हूँ??

*****

सूरज आज भी ढल गया और चाँद निकल आया है

तुम मेरे साथ नहीं, यह चाँदनी में मेरा ही साया है

अगले सूरज के साथ तुम आओ

कब से बस यही आस लगाती हूँ

*****

एक हिचकी फिर आ गयी, आँखों के पानी से रोका है

मालूम है मुझे यह मेरा भ्रम है, सिर्फ़ एक धोखा है

पर शायद तुमने मुझे याद किया

इसी आस पर हर अगली साँस ले पाती हूँ।

15 टिप्‍पणियां:

डॉ .अनुराग ने कहा…

एक हिचकी फिर आ गयी, आँखों के पानी से रोका है

मालूम है मुझे यह मेरा भ्रम है, सिर्फ़ एक धोखा है

पर शायद तुमने मुझे याद किया

इसी आस पर हर अगली साँस ले पाती हूँ।


उदासी सिमट आयी है कविता में ...पर खूब लिखी है .......अगली बार मुस्कान की उम्मीदे रखेंगे

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

सूरज आज भी ढल गया और चाँद निकल आया है
तुम मेरे साथ नहीं, यह चाँदनी में मेरा ही साया है
अगले सूरज के साथ तुम आओ
कब से बस यही आस लगाती हूँ

बड़ी कशिश है ! गहराई से भाव व्यक्त
किए हैं ! शुभकामनाएं !

ज़ाकिर हुसैन ने कहा…

क्या वो तुम ही थे? जो मेरे साथ थे

यह सवाल कई कई बार ख़ुद से दोहराती हूँ।

sach hai is bhag-daud bhari zindgi main hum sub kho hi to gaye hain

Anwar Qureshi ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा ...

Smart Indian ने कहा…

बहुत सुंदर रचना. कलम में कला हो और ह्रदय में संवेदना तो तीस कितनी भी गहरी हो उसे बेहद खूबसूरती से उकेरा जा सकता है.

pallavi trivedi ने कहा…

सूरज आज भी ढल गया और चाँद निकल आया है

तुम मेरे साथ नहीं, यह चाँदनी में मेरा ही साया है

अगले सूरज के साथ तुम आओ

कब से बस यही आस लगाती हूँ

badi gahri udasi chhalak rahi hai..bahut sundar rachna...

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

प्रज्ञा जी ,
परिवार एवं इष्ट मित्रों सहित आपको जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ! कन्हैया इस साल में आपकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करे ! आज की यही प्रार्थना कृष्ण-कन्हैया से है !

सस्नेह ताऊ

Unknown ने कहा…

badiya lika hai aur main aajkal tumhara blog padna bahut enjoy karti hoon bas ek hi baat poochni hai ti maal chori ka to nahin hai na all the best Love Anjali

विक्रांत बेशर्मा ने कहा…

एक हिचकी फिर आ गयी, आँखों के पानी से रोका है

मालूम है मुझे यह मेरा भ्रम है, सिर्फ़ एक धोखा है

पर शायद तुमने मुझे याद किया

इसी आस पर हर अगली साँस ले पाती हूँ।



बहुत अच्छी रचना है !!!!!!!!

شہروز ने कहा…

kafi paripakvta aa gayi hai.

kai pankti prbhav rakhti hai.
har ik ka apna maqaam hai.
apna arth hai.
apni bhav-bhangima hai.

achchi rachna .

डा. अमर कुमार ने कहा…

.




शायद तुमने याद किया..
इसी विश्वास पर टिपियाता हूँ


अपुन तो ऎंवेंई बोम मार रहा था...
बहुत ही सुगढ़ रचना है,
वाकई !

Richa Sharma ने कहा…

Ati uttam

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

परिवार व इष्ट मित्रो सहित आपको दीपावली की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं !
पिछले समय जाने अनजाने आपको कोई कष्ट पहुंचाया हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !

अमिताभ भूषण"अनहद" ने कहा…

एक हिचकी फिर आ गयी, आँखों के पानी से रोका है

मालूम है मुझे यह मेरा भ्रम है, सिर्फ़ एक धोखा है

पर शायद तुमने मुझे याद किया

इसी आस पर हर अगली साँस ले पाती हूँ।
बेहद भावपूर्ण ,बहुत ही सुन्दर

vijay kumar sappatti ने कहा…

namaskar..

bahut der se aapki kavitayen padh raha hoon ..is kavita ne man ko kahin rok sa diya hai .. aap bahut accha likhte hai ...aapki kavitao ki bhaavabhivyakti bahut sundar hai ji ..

एक हिचकी फिर आ गयी, आँखों के पानी से रोका है

मालूम है मुझे यह मेरा भ्रम है, सिर्फ़ एक धोखा है

पर शायद तुमने मुझे याद किया

इसी आस पर हर अगली साँस ले पाती हूँ।

ye pankhtiyan apne aap me kuch kahti hai ...

meri badhai sweekar kare,

dhanyawad.

vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html