कभी कभी पुरानी बातों को याद करते हुए बहुत अच्छा लगता है। खास कर कि बारिश के मौसम में।
यह 'अमित' के लिए.....
सुबह तुम्हारे घर से जाने के बाद,
कुछ यादों ने 'मुझे' आ घेरा है।
आज उठा के फिर से कलम को,
कागज़ पर स्याही को उकेरा है।
बारिश ने दरवाज़े पर आहट की,
गीली मिटटी में कुछ निशान मिले।
पीछा किया जब उन कदमों का,
कुछ दूरी पर दो लोग दिखे।
बरसों पुरानी बारिश में,
वो हँसते और गाते थे।
कुछ और पास गयी तो पाया,
वो कोई और नहीं ख़ुद 'हम' ही थे।
'मेरे' होने से अनजान थे 'हम',
सपनों के महल सजाते थे।
कभी 'मैं' रूठ जाती थी,
तो कभी 'तुम' 'मुझे' मनाते थे।
यादों की उस बारिश में,
जब प्यार का सूरज आया था।
रिश्तों की खिली धूप से,
'हमने' अपना इन्द्रधनुष बनाया था।
उन सात रंगों के साथ,
चलो अब घर को आ जाऊं।
शाम को जब तुम घर लौटो,
'तुम' को 'मैं' फिर 'हम' से मिलवाऊँ।
19 टिप्पणियां:
अच्छी पोस्ट है
मेरा ब्लॉग देखे
सच-मुच बारिश का मौसम ऐसा ही होता है
जिसमें बूंदों के साथ-साथ बहुत सी यादें बरस कर हमें भिगोती रहती हैं
बहुत अच्छी लगी ये बूंदा-बांदी जिसमें आपने खुद भीग कर हमें भी भिगो दिया
उम्मीद है आगे भी आप अपनी ऐसी बारिश से हमें सराबोर करती रहेंगी
बहुत सुंदर और सहज कविता है. बधाई हो प्रज्ञा.
यादों की उस बारिश में,
जब प्यार का सूरज आया था।
रिश्तों की खिली धूप से,
'हमने' अपना इन्द्रधनुष बनाया था।
उन सात रंगों के साथ,
चलो अब घर को आ जाऊं।
शाम को जब तुम घर लौटो,
'तुम' को 'मैं' फिर 'हम' से मिलवाऊँ।
बहुत प्यारा ओर सच्चा अहसास है.....बेहद खूबसूरत .....
यादों की उस बारिश में,
जब प्यार का सूरज आया था।
रिश्तों की खिली धूप से,
'हमने' अपना इन्द्रधनुष बनाया था।
bahut pyara bimb hai.
भावप्रवणता अच्छी है । बधाई ।
जयप्रकाश मानस
www.srijangatgha.com
उन सात रंगों के साथ,
चलो अब घर को आ जाऊं।
शाम को जब तुम घर लौटो,
'तुम' को 'मैं' फिर 'हम' से मिलवाऊँ।
achha hai
badhai
उन सात रंगों के साथ,
चलो अब घर को आ जाऊं।
शाम को जब तुम घर लौटो,
'तुम' को 'मैं' फिर 'हम' से मिलवाऊँ।
घंणी सुथरी लागी ताऊ नै थारी
यो कविता प्रज्ञा जी ! थारा
ब्लॉग भी घण्णा सुथरा दिखरया सै !
लगता है ताऊ को पढ़ना ही पडेगा !
भोत भोत शुभकामनाए और ताऊ को याद
करण के लिए थारा घण्णा धन्यवाद !
i
बरसों पुरानी बारिश में,
वो हँसते और गाते थे।
कुछ और पास गयी तो पाया,
वो कोई और नहीं ख़ुद 'हम' ही थे।
-क्या बात है!! बहुत खूब लिखा है. लिखती रहिये. अनेकों शुभकामनाऐं.
जिस सादगी से आपने बारिश के मौसम को बयां किया है वो काबिले तारीफ है .मुझे ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी -
उन सात रंगों के साथ,
चलो अब घर को आ जाऊं।
शाम को जब तुम घर लौटो,
'तुम' को 'मैं' फिर 'हम' से मिलवाऊँ।
rachna to aap ki khoobsurat hai hi. lekin isme jo aapka apnapan jhalak raha hai vo ghazab hai. bdhai ho itni sundar rachna ke liye
ab nai raftaar me kagaz per syahi ke bajaay blog per key board chalaane ka prachalan hai
mohtarma
rajesh
ab nai raftaar me kagaz per syahi ke bajaay blog per key board chalaane ka prachalan hai
mohtarma
rajesh
bahut hi khoobsurat kavita hai...pyaari feelings hain.
bahut sunder...
उन सात रंगों के साथ,
चलो अब घर को आ जाऊं।
शाम को जब तुम घर लौटो,
'तुम' को 'मैं' फिर 'हम' से मिलवाऊँ।
'मेरे' होने से अनजान थे 'हम',
सपनों के महल सजाते थे।
कभी 'मैं' रूठ जाती थी,
तो कभी 'तुम' 'मुझे' मनाते थे।
ye panktiyan bhaut kuch bata rahi hai
har rishte main hum jab tak ho tab tak wo sunder hai
main aur tum aate hi bhaut mushkilen aa jaati hai
bhaut achha likha hai
हृदय से निकले शव्द, सुन्दर प्रयास एवं प्रस्तुति । धन्यवाद प्रज्ञा जी
इस कविता की सादगी ही इसकी खासियत है ......बहुत सुंदर......
शाम को जब तुम घर लौटो,
'तुम' को 'मैं' फिर 'हम' से मिलवाऊँ।
बहुत बहुत खुबसूरत एहसास है यह ..आपके लिखे ने तो हमारा दिल मोह लिया :)
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