बुधवार, 11 जून 2008

एक आग का दरिया है....

अजी नहीं, किसी इश्क कि बात नहीं कर रहे हम...
एक दिन इंटरनेट पर बैठे हुए नज़र पड़ी एक ब्लॉग पर। पल्लवी त्रिवेदी का ब्लॉग था और उसमे एक लेख लिखा था उसने "बेशरम की संटी"। उसमें उसने मास्टरों का कहर बताया था छात्रों के ऊपर।
पढ़ते पढ़ते होंठ मुस्कुराते चले गए। और मन में आता रहा की अरे हाँ ऐसा ही तो होता था!!!
खैर यह बात तो हुई छात्रों की। अगर मास्टरों की बात करें तो उनके लिए भी छात्र किसी खौफ से कम नहीं होते। हमने भी कुछ समय के लिए मास्टरी की है। जयपुर के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में पढाते थे। हर रोज़ राम का नाम लेकर कॉलेज जाते थे।
जिस दिन पहली क्लास लेनी थी, उस दिन तो लगा कि क़यामत का दिन है। कसम से कभी भी पढ़ाने के बारे में नहीं सोचा था। खैर अब जब ओखली में सर दे ही दिया था तो क्या हो सकता था।
पूरे १ साल और ५ महीने पढाया। और सच में एक दिन भी ऐसा नहीं हुआ कि हमें लगा हो कि अरे इसमे क्या है? यह तो आसान सी चीज़ है। पढ़ा देंगे कैसे भी। हर क्लास के बाद लगता था कि आजकल के बच्चे भी!!!!
और इतना ही नहीं, हद तो तब होती थी जब ऐसा कोई टॉपिक फँस जाता था, जो हमने या तो पढ़ा नहीं, या फिर जानबूझ कर छोड़ दिया था। ऐसे में हमें अपने मास्टरों कि बहुत याद आती थी। बेचारे कितना चाहते थे कि हम लोग हर चीज़ पढ़ लिख जाएं। पर हमें हर टॉपिक पढ़ना अपना समय गंवाना लगता था। अब बुरे फँसे!! पता नहीं क्लास के बीच में ही कौन सा होनहार उठ कर क्या सवाल कर दे?? फिर बगलें झाँकने के अलावा कोई और रास्ता नहीं रहेगा। और उसके बाद नौनिहालों की खामोश किलकारियाँ?? न बाबा सब कुछ पढ़ना पड़ता था। तब लगता था कि विद्यार्थी जीवन अति उत्तम!!
आजकल के घुड़ दौड़ के समय में कॉलेजों में नया चोचला चला है, "teacher guardian" बनाने का। यानी कि आपके पास बहुत सारे नन्हें मुन्ने सौंप दिए जाते है। आपको उनके सुबह के नहाने धोने से लेकर रात के सपनों तक का हिसाब रखना है। कोई बच्चा क्यों दुखी है? कोई पढता क्यों नहीं है? किसी को घर से क्या परेशानी है.... आदि आदि.... गोया हम मास्टर न होकर कोई "psychaterist" हो गए। खैर काम की खातिर यह भी करते थे। और उसका हिसाब किताब कॉलेज के मैनेजमेंट को देना।
कॉलेज अपना नाम ऊंचा रखने के लिए चाहता था कि उसके बच्चें ही टॉप करें। इसके लिए जरूरी हो जाता था कि उनके नंबर्स अच्छे आयें। और नंबर्स अच्छे आने के लिए क्या जरूरी होता है?? हमें तो यही पता था कि अच्छे से पढ़ना... पर नहीं इस नौकरी ने हमें सिखाया कि छात्रों के अच्छे नंबर्स के लिए जरूरी होता है मास्टरों का अच्छे से पढाना और उससे ज्यादा जरूरी आँखें बंद करके कॉपी जांचना.....
अब कैसे??? क्यों??? के फेरे में ना पडिये आप!!!!
एक किस्सा याद आ गया। एक बच्चे ने कोई शरारत कर दी। हमें भी गुस्सा आ गया। राजपूत खून है, उबल गया। हम भी उससे झूठिमूठी गुस्सा हो गए। और पूरी क्लास हमने इस "lecture" में ही निकल दी। वैसे मन ही मन हम खुश हो रहे थे, की अच्छा हुआ वरना आज भी पढाना पड़ता। उल्टे उसने हमारी मदद ही की थी। पर यह उसे तो नहीं बता सकते थे न!! काश वह यह पढ़ रहा हो। वैसे भगवन की दुआ और अपनी मेहनत से अब वह अच्छा खासा कमा रहा है। जी हाँ उसकी मेहनत और भगवन की दुआ ही है, वरना हम जैसे मास्टर तो.......
खैर हम बता रहे थे कि उसने ऐसी शरारत की कि हमारा खून खौल उठा। हमने कसम खा ली कि क्लास में या तो यह नहीं या हम नहीं.... अब बेचारा लगा माफ़ी माँगने। मन ही मन तो हम खुश हो रहे थे खुशामद करवा के पर ऊपर से गुस्सा भी दिखाना था। जब उसने कई बार माफ़ी मांगी तो हमने दार्शनिक बनते हुए उसे खूब बड़ा ज्ञान दे दिया जो हमने अपने गुरुजनों से सुना था और आखिर में उससे एक सवाल किया- "मेरी जगह अगर तुम होते तो क्या करते?"
अरे वह तो आज का नौजवान!!! तुरंत बिना देर किए बोला "मैडम माफ़ कर देता"
बस फिर क्या था? पूरी क्लास लगी हँसने। और हम अपना सा मुह लेकर रह गए। जाहिर सी बात है माफ़ी तो उसे मिल ही चुकी थी।
यानी कि हमने तो अब मास्टरी से तौबा कर ली है। हालांकि हमारे माँ और बाप दोनों मास्टर रह चुके है। और अगर उन्हें हमारे इन विचारों का पता लग गया तो ना जाने उनके दिलों पर क्या बीतेगी? पर हमने तो आपसे अपने दिल का सच कहा है।

7 टिप्‍पणियां:

khalid ने कहा…

pata nahi mastaro ko samman ijzat ki badi chinta hai .bchcho ke ghan aur mastar ke ghan me laghbhag adha ya ek ka phar hoga ....jo woh ek ghanta pehle pad kar aate ek ghante baad use bchche bhi jaan jate hai ......itna karne ke liye samaana chhiye samman do ge to mile ga .

Surabhi ने कहा…

ha ha .... ye mast hai di khash aapke students ye pad le ... to hans hans k pagal ho jayenge

addictionofcinema ने कहा…

nice memories we all have about our school days aur apne use taza kar diya hai. badhai

Unknown ने कहा…

Mere Jaise Honhar Students ko padaya hai aapne... So Sincere I was :P.

Aashish Sharma

Anjali ने कहा…

very true pragya.....i was also teacher once..same to same situation......daily i feel like...."bas yeh class theek se ho jaye"...some old good horrifing days...good job pragya...three cheers to you

Akku ने कहा…

haan didi mastron ka yahi haal rehta hai vo bhi humaare jaise log jo sirf thode time ke paas masteri me ghus jaate hain bina kisi aim ke . aur master hi kya kisi bhi naukri me sabke yahi haal hain ..... aapka yeh vyang ek baar sabhi naujawaan mastron ko padhna chahiye jo jaise taise college ke exam pass karke khud juniors ki waat lagaane aur us se bhi jayaada khud ka mazaak banwaane college me mastergiri karne lag jaate hain. mai to aise kai gadhon ko jaanta hu jo HOD bhi ban gaye hain. khud ke paper clear karne ke waande the jab khud padte the par ab dekho ....HOD.


vaise bahut sahi bayaan kiya hai aapne man ki vyatha ko aisi kashmkash ki haaye pata nai aaj kya hoga bas yeh ek ghanta nikal jaye ........

Akku ने कहा…

haan didi mastron ka yahi haal rehta hai vo bhi humaare jaise log jo sirf thode time ke paas masteri me ghus jaate hain bina kisi aim ke . aur master hi kya kisi bhi naukri me sabke yahi haal hain ..... aapka yeh vyang ek baar sabhi naujawaan mastron ko padhna chahiye jo jaise taise college ke exam pass karke khud juniors ki waat lagaane aur us se bhi jayaada khud ka mazaak banwaane college me mastergiri karne lag jaate hain. mai to aise kai gadhon ko jaanta hu jo HOD bhi ban gaye hain. khud ke paper clear karne ke waande the jab khud padte the par ab dekho ....HOD.


vaise bahut sahi bayaan kiya hai aapne man ki vyatha ko aisi kashmkash ki haaye pata nai aaj kya hoga bas yeh ek ghanta nikal jaye ........