शनिवार, 12 अप्रैल 2008

एक एहसास ताज़गी का

अवाक रह गयी थी रति!!!!
क्या बोल दिया यह सुमित ने ??
इतना बड़ा सच ??
उसने सपने में भी नही सोचा था की सुमित से ऐसे मिलना होगा और उसके बाद ऐसा तूफ़ान आएगा.….
इन दस सालों में भूल ही तो गयी थी वह उसे.....
हाँ याद रखने लायक कोई याद भी तो नही थी उससे जुड़ी हुई…
पर उत्सुकता हमेशा ही रही रति को उसके बारे में जानने की। उसके बारे में ही क्यों , कितने लोग थे जो ज़िंदगी में आगे निकल गए या फिर पीछे रह गए ….
रति को हमेशा ही भूले बिसरे सबकी याद आ ही जाती है.. ऐसी ही है वह। क्या करे ? और कोई काम भी तो नही है न उसे। बस पिछली बातों और लोगों को याद करना , घर का काम निपटना , पति और बेटे की देखभाल …..

…….
सुबह से ही जल्दी थी उसे आज। बारिश होने वाली है। जल्दी जल्दी बाज़ार के लिए नहीं गयी तो आफत ही आ जायेगी। फिर बैठे रहना पड़ेगा बारिश रुकने के इंतज़ार में। काम खत्म करके फटाफट कोई ऑटो पकड़े और घुस जाए किसी मॉल में। फिर होती रहे बारिश उसकी बला से।

“उफ़ ! इन मॉलों में भी कितनी भीड़ होती है आजकल ? लोगों के पास बहुत पैसा है खर्च करने को।”
यही सब सोचते हुए आगे बढ़ रही थी की अचानक कोई जाना पहचाना सा चेहरा दिखा। फिर उसे लगा की उसका वहम है। कहाँ वह भी किसी को देख कर एकदम पहचानने की कोशिश करने लगती है। अतुल को उसकी इसी बात पर बहुत गुस्सा आता है। और उन्हें चिढाने का बहाना मिल जाता है।
पर नहीं यह तो सुमित ही है। चलो पास जाकर देख लेते हैं। अगर वह नही होगा तो क्या हुआ ? और अगर कोई और हुआ और उसने रति को ऐसे घूरते हुए देख लिया तो ???

तो क्या ? डरती है क्या वह ?? कह देगी की उसे धोखा हुआ था।
ह्म्म ज़माने ने इतनी तरक्की तो कर ही ली है की लोग इन छोटी मोटी बातों पर ध्यान न दें …
रति धीरे से उस दिशा में बढ़ी।
हाँ वही है ….
इससे पहले की वह कुछ कहती , सामने वाले की नज़र ही उस पर पड़ गयी …
सामने की आंखों में पहचान का भाव उतरा …. फिर असमंजस का ..
“चलो अब शक दूर किया जाए।” रति ने सोचा।
“सुमित ??”
“रति??”
“हे भगवान्!!! तुम ही हो। मेरा अंदाज़ सही निकला। कैसे हो ? कहाँ हो ? कहाँ थे इतने दिनों तक ? यहाँ कैसे ??”
“अरे अरे ब्रेक दो भाई . इतने सवाल एक साथ??.”
कुछ संकुचा गयी वह.… “नहीं नहीं वह क्या है न की इतने दिनों … सालों बाद अचानक तुम्हें देखा तो …”
“ह्म्म समझ सकता हूँ मैं। पहले ज़रा बिल चुका दूँ फिर तुम्हारी बातों का जवाब देता हूँ ”
“ ठीक है ”
……

“बस कुछ काम से आया था इस शहर में। सोचा जाते समय घरवालों के लिए कुछ लेता चलूँ। इसीलिए यहाँ आज खरीदारी करने आ गया ”
"अच्छा किया। कहाँ रुके हो?"
"कम्पनी का गेस्ट हाउस है।"
"वापस कब जाना है?"
"परसों का टिकट मिला है।"
"अच्छा... चलो फिर तुम घर चलो। अतुल से भी मिल लेना। और घर का खाना भी खा लेना।"
"नहीं रहने दो... तुम्हें परेशानी..."
"हाँजी मुझे परेशानियाँ उठाने का शौक है। अब चलो भी। कैसी अजनबियों जैसी बातें कर रहे हो??"
"अच्छा बाबा चलो। तुम बिल्कुल नही बदली। "
"अच्छा!! मतलब तुमसे यहीं से टाटा कर लेती??"
"नहीं नहीं चलो। वरना बारिश फिर से शुरू हो जायेगी।"
......
घर जाने के बाद थोड़ा काम में उलझ गयी थी वह। खाने का समय भी हो रहा था। अतुल दिन में खाना खाने घर ही आने वाले हैं। बेटा भी आ गया था स्कूल । आते ही उसने घोषणा कर दी कि उसे आज अपने सबसे पक्के दोस्त की "बर्थ-डे पार्टी" में जाना है। और शाम को पापा को उसे वापस लेते हुए आना पड़ेगा।
"मुझे आते हुए आज देर हो जायेगी।" अतुल ने समझाना चाहा बिट्टू को।
"अच्छा है, मुझे देर तक पार्टी में रुकने को मिलेगा। वैसे भी मेरे सबसे पक्के दोस्त कि बर्थ-डे है। मुझे तो रुकना ही चाहिए न??" बिट्टू ने अपना तर्क दिया।
"हाँ तेरे पक्के दोस्त हर महीने बदलते रहते हैं"
"पापा मैं कुछ नहीं जानता। सबके पापा लेने आयेंगें। आपको भी आना होगा बस।"
"अच्छा बाबा आ जाऊंगा।"
.....

पापा बेटे के जाने के बाद वह और सुमित बैठे। ढेर सारी बातें की। पुरानी यादों को ताज़ा किया। कॉलेज के दिनों को याद किया।
उसकी और सुमित की हमेशा ही अच्छे से बात होती थी। उसे हमेशा सुमित का स्वभाव पसंद था। हंसते रहने वाला। बात बात पर चुटकुले। वह भी तो ऐसी ही थी। शायद यही बात थी कि उन दोनों को एक दूसरे का साथ भाता था। समय धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था। उनके कॉलेज का भी आखरी साल आ गया। अब चिंता थी नौकरी की। हालांकि यह चिंता लड़कियों को कम ही सताती है, पर उसका हमेशा ही लक्ष्य रहा था अच्छी सी नौकरी का।
आखरी साल भी खत्म हुआ। अब सब अलग अलग दिशाओं में चले गए। ज़िंदगी आगे बढ़ती रही।
रति की भी नौकरी, शादी, बिट्टू.... जब से बिट्टू हुआ है, उसने नौकरी छोड़ दी है। कुछ समय बाद करेगी।
पर अपने दोस्तों को रति हमेशा याद करती रहती थी। कभी भी मौका मिलता था, तो पुराने कॉलेज जाती ज़रूर थी। शायद पुराने दोस्तों का कुछ पता लग सके.. पूजा, प्रिया, नीरजा, रवि, सुमित, राहुल सब कहाँ है? कैसे हैं?
कुछ लोगों से उसका सम्पर्क है। पर सुमित को तो वह पूरे दस सालों बाद देख रही है।
"बदले नहीं तुम। वैसे ही हो। मैं तो मोटी हो गयी है न?"
"हाँ थोड़ा सा "
"अच्छा सच?"
"हा हा हा " हँसी आ गयी सुमित को। " नहीं बाबा नहीं बदली तुम। अभी भी वैसी ही बातें करती हो।"
"और सुनाओ। क्या हाल है? हो कहाँ तुम आजकल? कोई सम्पर्क ही नही रहा तुमसे। किसी से मुलाक़ात हुई तुम्हारी कॉलेज के बाद?"
"हाँ कुछ लोगों से है"
"मेरा भी रोहित, पूजा से ही है। बाकी तो ना जाने कहाँ खो गए। तुम्हारा भी कुछ पता नही। और फिर हमारा वह शहर भी छूट गया। मम्मी पापा अब इसी शहर में आ गए हैं रहने।"
"अच्छा!!! कब??"
"हो गए ४-५ साल।"
"ओह तभी...."
"तभी क्या??"
"कुछ नहीं। तुम्हारे घर का फ़ोन मिला रहा था तो किसी ने उठाया नही था।"
....

"रति क्या तुमने मुझसे सम्पर्क करने की कोई कोशिश नही की?"
"हाँ की थी। पर सबकी तरह तुम्हारा भी कोई पता नही था।"
"बस??"
"और क्या??"
"नहीं कुछ नहीं।"
"कुछ नहीं?? मतलब?? ओहो सुमित तुम हमेशा पहेलियों मी ही क्यों बात करते हो?"
"रति तुम्हें कुछ नही पता?"
"क्या?"
"छोडो जाने दो।"
"क्या सुमित? अरे यार पहेलियाँ मत बुझाओ। तुम्हारी यह आदत नही गयी।"
"रति। तुम मेरे बारे में क्या सोचती थी? मेरा मतलब है..."
"क्या सोचती थी? क्या सोच सकती थी? तुम हमेशा मेरे अच्छे दोस्त रहे थे। बस पता नही कहाँ गायब हो गए थे?"
"मैं अपने आप को तुम्हारे काबिल बनने गया था रति।"
"!!!!!!!"
"हमेशा कहना चाहता था। कभी मौका नहीं मिला। मुझे पता था तुम इसी शहर में हो अपने परिवार में खुश हो। यहाँ आने के पहले मेरे मन में एक हलकी सी उम्मीद थी..... शायद तुमसे मुलाक़ात हो जाए...... बहुत सालों तक इंतज़ार किया तुम्हारा.... शायद कहीं से तुम आओ.... शायद कहीं से तुम्हारा पता मिल जाए.... फिर पूजा से पता चला तुम्हारी शादी के बारे में..... टूट गया था मैं...... गुस्सा भी आया तुम्हारे ऊपर। मेरा इंतज़ार नहीं कर सकती थी? फिर सोचा कि मेरा इंतज़ार कैसे करती तुम??? मैंने कभी तुमसे कुछ कहा ही नहीं। हमेशा सोचता था कि अपने आप को तुम्हारे काबिल बना लूँ, फिर तुमसे और तुम्हारे घरवालों से बात करूँगा... पर लगता है मैंने बहुत देर कर दी... "

"!!!!!!!"

"देखो मुझे ग़लत नही समझना। बहुत हिम्मत करके मैंने अपने दिल कि बात की है।"

"...."

"कुछ तो बोलो रति। चुप नहीं रहो। मुझे ग़लत तो नही समझ रही न?"

"पता नहीं... क्या बोलूं? समझ ही नहीं आ रहा.... ग़लत सही... कुछ भी समझ नही आ रहा.... कभी सोचा ही नही ऐसे। हम कभी ऐसे रहे ही नहीं कि ऐसा सोचूं मैं। सच सुमित मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नही था। तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो? जैसे सब वैसे तुम, वैसी मैं.. बस इससे आगे मैं कुछ सोचती ही नही थी। ज़रूरत भी नही हुई.. और आज अचानक इतने सालो बाद.... "

"मैंने परेशान कर दिया ना?? नही करना चाहता था। बस ख़ुद को रोक नही पाया। जब कहना था, तब कुछ नहीं कहा और अब जब इसका कोई मतलब नहीं है, तो यह सब लेकर बैठ गया.... पर रति आज मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ कि तुम मेरे लिए क्या थी? मैंने हमेशा अपनी आगे कि ज़िंदगी को तुम्हारे साथ ही बिताने का सपना देखा था। मैं तुम्हें हर खुशी देना चाहता था। मैं चाहता था कि तुम्हें कभी किसी चीज़ कि कमी न हो। इसीलिए खूब पैसा कमाना चाहता था। और उसके लिए मुझे समय चाहिए था। मुझे समय भी मिला, पैसा भी मिला. बस तुम्हें खो दिया मैंने। "

"फिर अब क्यों कह रहे हो यह सब? क्या फायदा? "

"हर बात फायदे नुकसान के लिए थोड़े ही होती है रति। बस इतने सालों बाद तुम्हें देखा तो रहा नही गया। आज मैं अपनी ज़िंदगी में बहुत खुश हूँ। अच्छी बीवी है, प्यारा सा बेटा है। पैसा है। कोई कमी नहीं है। खूब खुश हूँ। बस तुम्हे देख के लगा कि यह खुशी हम दोनों साथ में बाँट सकते थे अगर मैंने समय रहते तुमसे बात कर ली होती।"

"....."

"अच्छा रति। अगर मैं उस समय तुमसे पूछता तो तुम क्या जवाब देती?"

"क्या सुमित? पता नहीं। शायद हाँ शायद ना। कुछ नहीं पता।"

"रति शायद हाँ भी कह देती न?"

"हाँ "

"बस अब इस बात को यहीं खत्म करो। मुझे खुशी है कि हो सकता है कि तुम हाँ कह देती पर दुःख है कि ऐसा हुआ नहीं।"

"...."

"कुछ मत सोचो रति। अब बोझ मत लो अपने दिल पर। हम बच्चे नहीं हैं। समझदार हो गए हैं। इन बातों से हमें फर्क नही पड़ना चाहिए ना?"

"हाँ...."
........
कहने को तो हाँ कह गयी थी रति। पर क्या सचमुच फर्क नही पड़ा था उसे?? अगर नही पड़ा था तो क्यों बार बार उसने अपना चेहरा आईने में देखने लगी थी?
अगर फर्क नही पड़ा तो क्यों वह अचानक गाने लगी??
अगर फर्क नही पड़ा तो क्यों अचानक उसको टीवी में कार्टून चैनल अच्छा लगने लगा??
अगर फर्क नही पड़ा तो क्यों आज उसका खूब सारा खाना बनाने का मन होने लगा???
क्यों? क्यों? क्यों?
......
अरे आज तो भाई मज़ा आ गया.... चिकन बना लिया तुमने??? क्यों??? अचानक?? अतुल को आश्चर्य हुआ.. कहाँ तो रति उनके पीछे पड़ी रहती है कि छोडो यह मांस खाना..... और कहाँ आज अचानक..... खैर ज्यादा पूछताछ नही कि उन्होंने। सोचा कि कहीं इसका मूड बदल गया तो?
......
मम्मी तुम बहुत अच्छी हो।
"क्यों भाई?" पूछ ही लिया अतुल ने।
"पापा मम्मी ने आज मुझे टिफिन में मैगी दी.... उसके बाद स्कूल से आने के बाद भारत के यहाँ भी छोड़ के आयी खेलने के लिए। फिर मेरे लिए क्रेयोंस भी लाई.."
"क्या बात है? आजकल तुम्हारी मम्मी बदल गयी है।"

सच ही तो है... बदल ही तो गयी है वह..
क्यों???
क्या करना??? अगर बदलाव अच्छा है तो उसकी जड़ क्या खोजनी??
खोजनी??? जड़ उसे मालूम है..
बस उसे पता चल गया है कि वह भी किसी के लिए महत्वपूर्ण है। उसे अच्छा लगा जानके कि कोई उसके बारे में सोचता था।
यह एहसास अच्छा है.... मीठा मीठा..... जैसे किशोर मन का होता है.... वह फिर उड़ने लगी है...
एक ठंडी हवा का झोंका आया और उसकी ज़िंदगी में कुछ ताज़गी डाल गया.....
बस इस एहसास को अपने ही पास रखेगी रति..... हमेशा.... यह एहसास सिर्फ़ और सिर्फ़ उसका है......
मुस्कुरा दी वह..... दिल से...... सपने में..... कई सालों बाद.......
एक एहसास ताज़गी का