गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

बचपन बचाओ

"बच्चों का बचपन मत छीनिए. उन्हें जीने दीजिये. लम्बी कूद के चक्कर में उनकी छोटी छोटी उछालों को मत रोकिये. अपनी हसरतें बच्चों पर थोपना बाल मजदूरी से भी बुरा है.."
तालियों के शोर से सारा पंडाल गडगडा उठा. 
उसकी ओजस्वी वाणी सुनकर सभी भावविभोर हो उठे. उनमे बहुत लोग थे जो वाकई में अपने को कुसूरवार महसूस कर रहे थे. सब ने मन ही मन अपने बच्चों से माफ़ी मांगी...

बहुत थक गयी थी वो. सारा दिन जुलूस में निकल गया था. 
"बचपन बचाओ" अभियान में कई दिनों से जुटी हुई थी. अब घर जाकर थोडा आराम करेगी.


"मेरी गुडिया वापस करो.. " 
"नहीं यह मेरी है.. तुम अपनी से खेलो "
दोनों बेटियों का शोर दरवाज़े ही सुने दे रहा था. 
उसका सर दर्द से फटा जा रहा था. 
तभी मम्मी मम्मी करती दोनों बेटियों ने उसे घेर लिया और शुरू हो गयी शिकायतों का पुलिंदा लेकर.. 
"मेरी गुडिया, मेरे खिलोने, मेरे कपडे..." न जाने क्या क्या...
चटाक.........
छोटी के नन्हे गालों पर उसकी पाँचों उँगलियों की छाप आ गयी...
"तुम लोग थोड़ी देर चुप नहीं रह सकती?? जब देखो तब कूदती रहती हो.. कब तमीज़ सीखोगी?? 
होमवर्क हो गया??"
......
"चुप क्यों हो?"
"नहीं "
"क्यों नहीं?"
......
"डांस क्लास का क्या हुआ?"
......
"मैंने कुछ पूछा!!!"
कांपते हुए बड़ी ने कहा "मुझे डांस करना अच्छा नहीं लगता.."
"क्यों?"
....
"पता है!! कितनी महँगी है वो टीचर? इतना पैसा खर्च करके तुम लोगों को किसी लायक बनाने की कोशिश कर रही हूँ और तुम हो कि सब बेकार.... ज़िन्दगी में क्या करोगे आगे?? अभी से नहीं सोचोगे तो आगे सोचने का भी मौका नहीं मिलेगा...."
उसके हाथ से "बचपन बचाओ" अभियान के लेख गिरं कर उड़ने लगे थे...

3 टिप्‍पणियां:

Smart Indian - स्मार्ट इंडियन ने कहा…

सुन्दर लघुकथा। बचपन बचाने और जीवन बनाने में संतुलन बनाना बडा कठिन काम है, विशेषकर संतुलित सोच वाले माता-पिता के लिये। लठैती प्रवृत्ति वालों को कोई मुश्किल नहीं होती बचपन की कुर्बानी पर बाकी जीवन पका देते हैं।

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

Well..it's very common in our society. This is really very sad.

By the way meaningful post. congrats.

pallavi trivedi ने कहा…

bahut sundar aur sarthak kahani...